गम को छुपाने का यही रास्ता नज़र आया!
किस किस को बताते बहते अश्कों का सबब,
के दर्द-ए-दिल दिल में किसने जगाया!!
महफिलों में कहीँ भी मज़ा ना रहा,
रखा दिल पे पत्थर तो खुद को सजाया!
बात-बे-बात अपनी आहें दबाकर,
दोस्तो के दर्मियाँ किस क़दर मुस्कुराया!!
ना थी चाह कभी मुझे मंकशी की,
जाम-ए-वफ़ा किसी बेवफा ने पिलाया!
क्या मुकद्दर से शिकवा करते रहे,
जो किस्मत में था वही कुछ तो पाया!!
ये किस मोड़ पे आगई हैं उम्मीदें,
के साया-ए-मंज़िल नज़र में ना आया!
अपनों ने पलट के देखा तक नहीं,
गैरों ने आकर गले से लगाया!!
अचछा हुआ के राज़ खुल ही गया,
दिल-e-नादान् पे खंजर किस ने चलाया!
शब्-ए-रोज़ चाहत सिला ये है की,
दिल के टुकड़े हुए वोह चुनने ना आया!!
- Don't know who wrote it